Betul: लाडली बहना की किस्त बंद! सिस्टम की गलती का खामियाजा भुगत रही हैं गरीब महिलाएं, नहीं मिल रहा समाधान

मध्य प्रदेश के बैतूल जिले में इन दिनों एक अजीब सा माहौल है। गरीब महिलाएं, जो लाडली बहना योजना के तहत हर महीने मिलने वाली छोटी-सी आर्थिक मदद पर निर्भर थीं, अब परेशान हैं। उनकी किस्तें बंद हो गई हैं, और वजह? सिस्टम की गलती! लेकिन इस गलती की सजा सरकार या प्रशासन नहीं, बल्कि ये मेहनतकश महिलाएं भुगत रही हैं। आखिर ऐसा क्यों हो रहा है? क्या इसके पीछे कोई बड़ी साजिश है, या फिर ये सिर्फ लापरवाही का नतीजा है? चलिए, इस समस्या की जड़ तक जाते हैं और समझते हैं कि बैतूल की इन महिलाओं के साथ हो क्या रहा है।

लाडली बहना योजना क्या है और क्यों है खास?

लाडली बहना योजना मध्य प्रदेश सरकार की एक महत्वाकांक्षी स्कीम है, जिसे 2023 में शुरू किया गया था। इसका मकसद था गरीब और मध्यम वर्ग की महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाना। इस योजना के तहत हर महीने 1,250 रुपये की सम्मान राशि सीधे महिलाओं के बैंक खातों में जमा की जाती है। ये राशि भले ही छोटी लगे, लेकिन ग्रामीण इलाकों में रहने वाली महिलाओं के लिए ये किसी वरदान से कम नहीं।

बैतूल की रहने वाली राधा बाई बताती हैं, “ये पैसे मेरे लिए बच्चों की स्कूल फीस और घर के छोटे-मोटे खर्चों के लिए बहुत काम आते थे। लेकिन पिछले दो महीने से पैसा नहीं आया, और अब तो समझ नहीं आ रहा कि क्या करूं।” राधा जैसी लाखों महिलाओं के लिए ये योजना सिर्फ पैसे की बात नहीं, बल्कि आत्मसम्मान और उम्मीद की किरण भी थी।

बैतूल में क्यों बंद हुई किस्तें?

अब सवाल ये है कि बैतूल में आखिर ऐसा क्या हुआ कि लाडली बहना की किस्तें अचानक बंद हो गईं? स्थानीय सूत्रों और कुछ महिलाओं से बात करने पर पता चला कि इसके पीछे सिस्टम में तकनीकी खराबी और आधार कार्ड से जुड़ी समस्याएं हैं। कई महिलाओं के बैंक खाते आधार से लिंक नहीं हैं, तो कहीं डेटा में गड़बड़ी की वजह से उनका नाम ही लिस्ट से हटा दिया गया।

एक सामाजिक कार्यकर्ता, संजय वर्मा, जो बैतूल में महिलाओं की मदद के लिए काम करते हैं, कहते हैं, “ये सारी दिक्कतें प्रशासन की लापरवाही से शुरू हुई हैं। आधार अपडेट करने के लिए कैंप लगाए गए थे, लेकिन ग्रामीण इलाकों तक जानकारी पहुंची ही नहीं। अब इसका खामियाजा गरीब महिलाएं भुगत रही हैं।” संजय का कहना है कि पिछले 6 महीनों में बैतूल में करीब 10,000 से ज्यादा महिलाओं की किस्तें रुक गई हैं।

सिस्टम की गलती का असर

सिस्टम की ये गलती सिर्फ तकनीकी नहीं, बल्कि इंसानी जिंदगियों पर भारी पड़ रही है। मिसाल के तौर पर, बैतूल के एक छोटे से गांव की शांति बाई की कहानी सुनिए। शांति के पति की कुछ साल पहले मौत हो गई थी, और वो अपने दो बच्चों को अकेले पाल रही हैं। लाडली बहना के पैसे से वो बच्चों की किताबें और दवाइयां खरीदती थी। लेकिन अब तीन महीने से किस्त बंद है, और वो कर्ज लेने को मजबूर हो गई है।

शांति कहती हैं, “मैंने बैंक में कई चक्कर काटे, लेकिन हर बार यही जवाब मिलता है कि सिस्टम में आपका नाम नहीं है। मैं तो पढ़ी-लिखी भी नहीं हूं, मुझे क्या पता कि ये सिस्टम कैसे ठीक होगा?” शांति की ये परेशानी अकेली नहीं है। बैतूल के सैकड़ों गांवों में ऐसी ही कहानियां सुनने को मिल रही हैं।

सरकार का रवैया और राजनीति का खेल

लाडली बहना योजना को शुरू करने वाली बीजेपी सरकार ने इसे चुनावी हथियार की तरह इस्तेमाल किया था। 2023 के विधानसभा चुनावों में इस योजना को खूब प्रचारित किया गया, और नतीजे भी सरकार के पक्ष में आए। लेकिन अब, जब चुनाव जीत लिया गया है, तो क्या इस योजना को धीरे-धीरे बंद करने की तैयारी हो रही है? कुछ लोग ऐसा ही मानते हैं।

X पर एक यूजर ने लिखा कि पिछले दो साल में मध्य प्रदेश में 3 लाख से ज्यादा महिलाओं को इस योजना से बाहर कर दिया गया है। हालांकि, ये आंकड़ा आधिकारिक तौर पर पुष्ट नहीं है, लेकिन बैतूल में जो हालात हैं, वो इस बात की ओर इशारा जरूर करते हैं कि कुछ तो गड़बड़ है। क्या सरकार सचमुच इस योजना को चुपचाप खत्म करना चाहती है, या फिर ये सिर्फ सिस्टम की नाकामी है? जवाब अभी साफ नहीं है।

आंकड़ों की सच्चाई

हालांकि सरकार की ओर से कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है, लेकिन कुछ स्वतंत्र रिपोर्ट्स बताती हैं कि मध्य प्रदेश में लाडली बहना योजना के लाभार्थियों की संख्या में कमी आई है। 2023 में जहां 1.31 करोड़ महिलाएं इस योजना से जुड़ी थीं, वहीं 2025 की शुरुआत तक ये संख्या घटकर 1.28 करोड़ के आसपास रह गई है। ये आंकड़े सवाल उठाते हैं कि क्या वाकई में सिस्टम की गलती है, या फिर जानबूझकर कुछ महिलाओं को बाहर किया जा रहा है?

गरीब महिलाओं पर क्या असर पड़ रहा है?

लाडली बहना की किस्त बंद होने का सबसे बड़ा असर गरीब महिलाओं की जिंदगी पर पड़ रहा है। बैतूल जैसे ग्रामीण इलाकों में, जहां रोजगार के सीमित साधन हैं, ये 1,250 रुपये महीने की राशि कई परिवारों के लिए बहुत मायने रखती थी। अब जब ये मदद बंद हो गई है, तो महिलाएं कर्ज, भूख, और तनाव का शिकार हो रही हैं।

एक स्थानीय दुकानदार, रामू भाई, बताते हैं, “पहले महिलाएं इन पैसों से घर का राशन खरीदती थीं। अब वो उधार मांगने आती हैं, लेकिन मेरे पास भी तो सीमित सामान है।” ये हालात सिर्फ बैतूल तक सीमित नहीं हैं। मध्य प्रदेश के कई जिलों से ऐसी ही खबरें सामने आ रही हैं।

बच्चों और परिवार पर प्रभाव

किस्त बंद होने का असर सिर्फ महिलाओं तक नहीं, बल्कि उनके बच्चों और पूरे परिवार पर पड़ रहा है। कई महिलाएं इन पैसों से बच्चों की पढ़ाई का खर्च उठाती थीं। अब स्कूल फीस न भर पाने की वजह से बच्चे पढ़ाई छोड़ने को मजबूर हो रहे हैं। ये एक ऐसा दुष्चक्र है, जो गरीबी को और गहरा कर सकता है।

समाधान कहां है?

अब बड़ा सवाल ये है कि इस समस्या का हल क्या है? क्या बैतूल की इन महिलाओं को फिर से उनकी सम्मान राशि मिल पाएगी? विशेषज्ञों का मानना है कि इसके लिए सरकार को कुछ ठोस कदम उठाने होंगे।

तकनीकी सुधार

सबसे पहले, सिस्टम में जो तकनीकी खामियां हैं, उन्हें दूर करना होगा। आधार और बैंक खातों को लिंक करने की प्रक्रिया को आसान बनाना जरूरी है। ग्रामीण इलाकों में जागरूकता कैंप लगाए जाएं, ताकि महिलाएं खुद अपनी जानकारी अपडेट कर सकें।

पारदर्शिता और जवाबदेही

दूसरा, सरकार को पारदर्शी तरीके से बताना चाहिए कि कितनी महिलाओं की किस्तें बंद हुई हैं और क्यों। अगर कोई गलती हुई है, तो उसे स्वीकार कर तुरंत सुधार करना चाहिए। जवाबदेही तय होनी चाहिए, ताकि प्रशासन पर दबाव बने।

महिलाओं की आवाज

तीसरा, और सबसे जरूरी, इन महिलाओं की आवाज को सुना जाए। बैतूल की शांति बाई, राधा बाई जैसी महिलाएं अपनी बात कहां रखें? इसके लिए एक हेल्पलाइन या शिकायत निवारण केंद्र बनाया जा सकता है, जहां उनकी समस्याएं तुरंत सुनी और सुलझाई जाएं।

निष्कर्ष – उम्मीद की किरण बाकी है

बैतूल में लाडली बहना योजना की किस W installments बंद होना एक गंभीर मसला है, जो सिस्टम की खामियों को उजागर करता है। ये सिर्फ पैसे की बात नहीं, बल्कि उन लाखों महिलाओं के भरोसे और सम्मान की बात है, जो इस योजना से जुड़ी थीं। सरकार अगर समय रहते कदम उठाए, तो न सिर्फ इन महिलाओं की जिंदगी पटरी पर लौट सकती है, बल्कि योजना का मकसद भी पूरा हो सकता है।

आप क्या सोचते हैं? क्या ये सिर्फ सिस्टम की गलती है, या इसके पीछे कुछ और है? अपनी राय हमें जरूर बताएं। और हां, अगर आपके आसपास भी ऐसी कोई कहानी है, तो उसे साझा करना न भूलें। आखिर, इन महिलाओं की आवाज को बुलंद करने की जिम्मेदारी हम सबकी है।

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